Ganesh Ji Ki Kahani : गणेश जी की कहानी

1022
Ganesh Ji Ki Kahani
Ganesh Ji Ki Kahani

Ganesh Ji Ki Kahani-1

Ganesh Ji Ki Kahani एक समय की बात है एक भाई बहन रहते थे। बहन का नियम था कि वह अपने भाई का चेहरा देखे ही खाना खाती थी। हर रोज वह सुबह उठती थी और जल्दी-जल्दी सारा काम करके अपने भाई का मुंह देखने के लिए उसके घर जाती थी। एक दिन रास्ते में एक पीपल के नीचे गणेश जी की मूर्ति रखी थी। उसने भगवान के सामने हाथ जोड़कर कहा कि मेरे जैसा अमर सुहाग और मेरे जैसा अमर पीहर सबको दीजिए। यह कहकर वह आगे बढ़ जाती थी। जंगल के झाड़ियों के कांटे उसके पैरों में चुभा करते  जाते थे। एक दिन भाई के घर पहुंची और भाई का मुंह देख कर बैठ गई, तो भाभी ने पूछा पैरों में क्या हो गया हैं। यह सुनकर उसने भाभी को जवाब दिया कि रास्ते में जंगल के झाड़ियों के गिरे हुए कांटे पांव में छुप गए हैं। जब वह वापस अपने घर आ जाए तब भाभी ने अपने पति से कहा कि रास्ते को साफ करवा दो, आपकी बहन के पांव में बहुत सारे कांटा चुभ गए हैं। भाई ने तब कुल्हाड़ी लेकर सारी झाड़ियों को काटकर रास्ता साफ कर दिया। जिससे गणेश जी का स्थान भी वहां से हट गया। यह देखकर भगवान गुस्सा हो गए और उसके भाई के प्राण हर लिए। 

लोग अंतिम संस्कार के लिए  जब भाई को ले जा रहे थे, तब उसकी भाभी रोते हुए लोगों से कहीं थोड़ी देर रुक जाओ, उसकी बहन आने वाली है। वह अपने भाई का मुंह देखे बिना नहीं रह सकती है। उसका यह नियम है। तब लोगों ने कहा आज तो देख लेगी पर कल कैसे देखेगी। रोज दिन की तरह बहन अपने भाई का मुंह देखने के लिए जंगल में निकली। तब जंगल में उसने देखा कि सारा रास्ता साफ किया हुआ है। जब वह आगे बढ़ी तो उसने देखा कि सिद्धिविनायक को भी वहां से हट दिया गया हैं। तब उसने जाने से पहले गणेश जी को एक अच्छे स्थान पर रखकर उन्हें स्थान दिया और हाथ जोड़कर बोली भगवान मेरे जैसा अमर सुहाग और मेरे जैसा अमर पीहर सबको देना और फिर बोलकर आगे निकल गई। 

भगवान तब भगवान सोचने लगे अगर इसकी नहीं सुनी तो हमें कौन मानेगा, हमें कौन पूजेगा। तब सिद्धिविनायक ने उसे आवाज दी, बेटी इस खेजड़ी की सात पत्तियां लेकर जा और उसे कच्चे दूध में घोलकर भाई के उपर छींटा मार देना वह  उठकर बैठ जाएगा। यह सुनकर जब बहन जब पीछे मुड़ी तो वहां कोई नहीं था। फिर वह यह सोचने लगी  कि ठीक है जैसा सुना वैसा कर लेती हूं। फिर वह 7 खेजड़ी की पत्तियां लेकर अपने भाई के घर पहुंची। उसने देखा वहां कई लोग बैठे हुए हैं। भाभी बैठी रो रही और भाई की लाश रखी हैं। तब उसने उस पत्तियों को बताए हुए नियम के तहत भाई के उपर  इस्तेमाल किया। तब भाई उठ कर बैठ गया। भाई बोला बहन से बोला मुझे बहुत ही गहरी नींद आ गई थी। तब बहन बोली यह नींद किसी दुश्मन को भी ना आए और उसने सारी बात अपने भाई को बता दी। 

तो मान्‍यता के अनुसार, ये है गणेश जी की चमत्कारी कहानी। 

Online Internship with Certification

Important Announcement – EasyShiksha has now started Online Internship Program “Ab India Sikhega Ghar Se

How EasyShiksha Internship/Training Program Works
How EasyShiksha Internship/Training Program Works
Frequently Asked Questions

Ganesh Ji Ki Kahani-2

एक बुढ़िया थी। वह बहुत ही गरीब और दृष्टिहीन थीं। उसके एक बेटा और बहू थे। वह बुढ़िया सदैव गणेश जी की पूजा किया करती थी। एक दिन गणेश जी प्रकट होकर उस बुढ़िया से बोले- ‘बुढ़िया मां! तू जो चाहे सो मांग ले।’ बुढ़िया बोली- ‘मुझसे तो मांगना नहीं आता। कैसे और क्या मांगू?’  तब गणेशजी बोले – ‘अपने बहू-बेटे से पूछकर मांग ले।’  तब बुढ़िया ने अपने बेटे से कहा- ‘गणेशजी कहते हैं ‘तू कुछ मांग ले’ बता मैं क्या मांगू?’  पुत्र ने कहा- ‘मां! तू धन मांग ले।’  बहू से पूछा तो बहू ने कहा- ‘नाती मांग ले।’  तब बुढ़िया ने सोचा कि ये तो अपने-अपने मतलब की बात कह रहे हैं। अत: उस बुढ़िया ने पड़ोसिनों से पूछा, तो उन्होंने कहा- ‘बुढ़िया! तू तो थोड़े दिन जीएगी, क्यों तू धन मांगे और क्यों नाती मांगे। तू तो अपनी आंखों की रोशनी मांग ले, जिससे तेरी जिंदगी आराम से कट जाए।’ इस पर बुढ़िया बोली- ‘यदि आप प्रसन्न हैं, तो मुझे नौ करोड़ की माया दें, निरोगी काया दें, अमर सुहाग दें, आंखों की रोशनी दें, नाती दें, पोता, दें और सब परिवार को सुख दें और अंत में मोक्ष दें।’  यह सुनकर तब गणेशजी बोले- ‘बुढ़िया मां! तुमने तो हमें ठग लिया। फिर भी जो तूने मांगा है वचन के अनुसार सब तुझे मिलेगा।’ और यह कहकर गणेशजी अंतर्धान हो गए। उधर बुढ़िया मां ने जो कुछ मांगा वह सबकुछ मिल गया। हे गणेशजी महाराज! जैसे तुमने उस बुढ़िया मां को सबकुछ दिया, वैसे ही सबको देना।

Ganesh Ji Ki Kahani-3

एक बार महादेवजी पार्वती सहित नर्मदा के तट पर गए. वहां एक सुंदर स्थान पर पार्वतीजी ने महादेवजी के साथ चौपड़ खेलने की इच्छा व्यक्त की. तब शिवजी ने कहा- हमारी हार-जीत का साक्षी कौन होगा? पार्वती ने तत्काल वहां की घास के तिनके बटोरकर एक पुतला बनाया और उसमें प्राण-प्रतिष्ठा करके उससे कहा- बेटा! हम चौपड़ खेलना चाहते हैं, किन्तु यहां हार-जीत का साक्षी कोई नहीं है. अतः खेल के अन्त में तुम हमारी हार-जीत के साक्षी होकर बताना कि हममें से कौन जीता, कौन हारा?

खेल आरंभ हुआ. दैवयोग से तीनों बार पार्वती जी ही जीतीं. जब अंत में बालक से हार-जीत का निर्णय कराया गया तो उसने महादेवजी को विजयी बताया. परिणामतः पार्वतीजी ने क्रुद्ध होकर उसे एक पांव से लंगड़ा होने और वहां के कीचड़ में पड़ा रहकर दुःख भोगने का श्राप दे दिया.

बालक ने विनम्रतापूर्वक कहा- मां! मुझसे अज्ञानवश ऐसा हो गया है. मैंने किसी कुटिलता या द्वेष के कारण ऐसा नहीं किया. मुझे क्षमा करें तथा शाप से मुक्ति का उपाय बताएं. तब ममतारूपी मां को उस पर दया आ गई और वे बोलीं- यहां नाग-कन्याएं गणेश-पूजन करने आएंगी. उनके उपदेश से तुम गणेश व्रत करके मुझे प्राप्त करोगे. इतना कहकर वे कैलाश पर्वत चली गईं.

एक वर्ष बाद वहां श्रावण में नाग-कन्याएं गणेश पूजन के लिए आईं. नाग-कन्याओं ने गणेश व्रत (Ganesh Ji)करके उस बालक को भी व्रत की विधि बताई. तत्पश्चात बालक ने 12 दिन तक श्रीगणेशजी का व्रत किया. तब गणेशजी ने उसे दर्शन देकर कहा- मैं तुम्हारे व्रत से प्रसन्न हूं. मनोवांछित वर मांगो. बालक बोला- भगवन! मेरे पांव में इतनी शक्ति दे दो कि मैं कैलाश पर्वत पर अपने माता-पिता के पास पहुंच सकूं और वे मुझ पर प्रसन्न हो जाएं.

गणेशजी(Ganesh Ji) ‘तथास्तु’ कहकर अंतर्धान हो गए. बालक भगवान शिव के चरणों में पहुंच गया. शिवजी ने उससे वहां तक पहुंचने के साधन के बारे में पूछा.

तब बालक ने सारी कथा शिवजी को सुना दी. उधर उसी दिन से अप्रसन्न होकर पार्वतीजी शिवजी से भी विमुख हो गई थीं. तदुपरांत भगवान शंकर ने भी बालक की तरह 21 दिन पर्यन्त श्रीगणेश का व्रत (Ganesh Ji) किया, जिसके प्रभाव से पार्वती के मन में स्वयं महादेवजी से मिलने की इच्छा जाग्रत हुई.

ALSO READ: Human Right Day 

If you want to learn advanced engineering technology then visit EasyShiksha

Download this article as PDF to read offline: