Navratri: नवरात्रि आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से मां दुर्गा की आराधना का महापर्व नवरात्रि शुरु होती है। नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ स्वरुपों मां शैलपुत्री, मां ब्रह्मचारिणी, मां चंद्रघंटा, मां कुष्मांडा, मां स्कंदमाता, मां कात्यायनी, मां कालरात्रि, मां महागौरी और मां सिद्धिदात्री की पूजा क्रमश: की जाती है। दुर्गाष्टमी या महानवमी को कन्या पूजा की जाती है। महानवमी को नवरात्रि हवन का भी आयोजन होता है। दशहरा के दिन रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण का पुतला दहन भी किया जाता है, वहीं विजयादशमी के दिन मां दुर्गा की मूर्तियों का विधि विधान से विसर्जन भी होता है। इस दिन शस्त्र पूजा भी की जाती है।
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General Detail About Navratri
नवरात्रि शब्द एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘नौ रातें’। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति / देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। दसवाँ दिन दशहरा के नाम से प्रसिद्ध है। नवरात्रि वर्ष में चार बार आता है। पौष, चैत्र, आषाढ,अश्विन मास में प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है। नवरात्रि के नौ रातों में तीन देवियों – महालक्ष्मी, महासरस्वती या सरस्वती और महाकाली के नौ स्वरुपों की पूजा होती है
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नौ देवियाँ जिनकी हम पूजा करते है :-
- शैलपुत्री – इसका अर्थ- पहाड़ों की पुत्री होता है।
- ब्रह्मचारिणी – इसका अर्थ- ब्रह्मचारीणी।
- चंद्रघंटा – इसका अर्थ- चाँद की तरह चमकने वाली।
- कूष्माण्डा – इसका अर्थ- पूरा जगत उनके पैर में है।
- स्कंदमाता – इसका अर्थ- कार्तिक स्वामी की माता।
- कात्यायनी – इसका अर्थ- कात्यायन आश्रम में जन्मि।
- कालरात्रि – इसका अर्थ- काल का नाश करने वली।
- महागौरी – इसका अर्थ- सफेद रंग वाली मां।
- सिद्धिदात्री – इसका अर्थ- सर्व सिद्धि देने वाली।
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ये 6 काम जरूर करें, मां दुर्गा करेंगी हर इच्छा पूरी
- अखंड ज्योति: वैसे तो नवरात्रि के दिनों में हर हिंदू के घर में मां की पूजा, आराधना के साथ अखंड ज्योति जलाई जाती है, लेकिन यदि आप देवी को प्रसन्न करने के लिए उनके समक्ष 9 मिट्टी के दीपक में अखंड ज्योति जलाएं, तो विशेष फल मिलता है. ध्यान रखें कि ये ज्योति बुझनी नहीं चाहिए. जो भी संकल्प हो उसे हाथ में पानी लेकर लें और दीपक के पास छोड़ दें.
- यें चीजें करें देवी मां को अर्पित: नवरात्रि के दिनों में हर दिन पांच सूखे मेवे चुनरी में रखकर देवी मां को अर्पित करें. धूप जलाकर देवी मां का पूजन करें ऐसा करने से दुर्गे मां अधूरी इच्छा पूरी करेंगी. साथ ही आपके घर में सुख और समृद्धि का वास होगा.
- हनुमान जी का करें पूजन: नवरात्रि के दिनों में हर दिन हनुमान जी का पूजन करें. इस दौरान पान के पत्ते में लोंग और बतासा रखकर हनुमान जी को अर्पित करें. ऐसा करने से हर प्रकार के कष्ट से मुक्ति मिलेगी और मनोकामना पूरी होगी.
- भोग लगाएं: नवरात्रि में देवी मां को हर दिन सात इलायची और मिश्री का भोग लगाएं. दुर्गे मां को ताजा पान के पत्ते में लोंग और बतासा रखकर अर्पित करने से वे प्रसन्न होती हैं और सुख, वैभव का वरदान देती हैं.
- इस मंत्र का करें जाप: नवरात्रि के दिनों में रुद्राक्ष या लाल चंदन की माला लेकर प्रतिदिन ॐ दुर्गाये नम: मंत्र का जाप करने से देवी मां प्रसन्न होती हैं और हर इच्छा को पूरा करती हैं.
- जरूरतमंदों को करें दान: नवरात्रि में पूजा के दौरान मखाने के साथ सिक्के रखकर मां दुर्गा को अर्पित करें. पूजा के बाद ये जरूरतमंदों को बांट दें. मंदिर मे में जाकर रोज प्रसाद चढ़ाएं और इस प्रसाद को गरीबों को दें. ऐसा करने से भी लाभ होगा.
8 दिन की है नवरात्रि 2021
इस वर्ष की नवरात्रि आठ दिनों की है क्योंकि आश्विन शुक्ल षष्ठी तिथि का क्षय हो रहा है। इस कारण से आठ दिनों की नवरात्रि है।
दुर्गाष्टमी 2021 या महाष्टमी 2021
नवरात्रि में प्रथम दिन के बाद अष्टमी का बहुत महत्व होता है। इसे दुर्गाष्टमी या महाष्टमी कहते हैं। इस वर्ष दुर्गाष्टमी 13 अक्टूबर दिन बुधवार को है। इस दिन मां महागौरी की पूजा होती है। जो लोग प्रथम दिन व्रत रखते हैं, वे महाष्टमी का भी व्रत रखते हैं।
प्रमुख कथा
लंका-युद्ध में ब्रह्माजी ने श्रीराम से रावण वध के लिए चंडी देवी का पूजन कर देवी को प्रसन्न करने को कहा और बताए अनुसार चंडी पूजन और हवन हेतु दुर्लभ एक सौ आठ नीलकमल की व्यवस्था की गई। वहीं दूसरी ओर रावण ने भी अमरता के लोभ में विजय कामना से चंडी पाठ प्रारंभ किया। यह बात इंद्र देव ने पवन देव के माध्यम से श्रीराम के पास पहुँचाई और परामर्श दिया कि चंडी पाठ यथासभंव पूर्ण होने दिया जाए। इधर हवन सामग्री में पूजा स्थल से एक नीलकमल रावण की मायावी शक्ति से गायब हो गया और राम का संकल्प टूटता-सा नजर आने लगा। भय इस बात का था कि देवी माँ रुष्ट न हो जाएँ। दुर्लभ नीलकमल की व्यवस्था तत्काल असंभव थी, तब भगवान राम को सहज ही स्मरण हुआ कि मुझे लोग ‘कमलनयन नवकंच लोचन’ कहते हैं, तो क्यों न संकल्प पूर्ति हेतु एक नेत्र अर्पित कर दिया जाए और प्रभु राम जैसे ही तूणीर से एक बाण निकालकर अपना नेत्र निकालने के लिए तैयार हुए, तब देवी ने प्रकट ह हुई , हाथ पकड़कर कहा- राम मैं प्रसन्न हूँ और विजयश्री का आशीर्वाद दिया। वहीं रावण के चंडी पाठ में यज्ञ कर रहे ब्राह्मणों की सेवा में ब्राह्मण बालक का रूप धर कर हनुमानजी सेवा में जुट गए। निःस्वार्थ सेवा देखकर ब्राह्मणों ने हनुमानजी से वर माँगने को कहा। इस पर हनुमान ने विनम्रतापूर्वक कहा- प्रभु, आप प्रसन्न हैं तो जिस मंत्र से यज्ञ कर रहे हैं, उसका एक अक्षर मेरे कहने से बदल दीजिए। ब्राह्मण इस रहस्य को समझ नहीं सके और तथास्तु कह दिया। मंत्र में जयादेवी… भूर्तिहरिणी में ‘ह’ के स्थान पर ‘क’ उच्चारित करें, यही मेरी इच्छा है।[7] भूर्तिहरिणी यानी कि प्राणियों की पीड़ा हरने वाली और ‘करिणी’ का अर्थ हो गया प्राणियों को पीड़ित करने वाली, जिससे देवी रुष्ट हो गईं और रावण का सर्वनाश करवा दिया। हनुमानजी महाराज ने श्लोक में ‘ह’ की जगह ‘क’ करवाकर रावण के यज्ञ की दिशा ही बदल दी।
नवरात्रि के पहले तीन दिन
नवरात्रि के पहले तीन दिन देवी दुर्गा की पूजा करने के लिए समर्पित किए गए हैं। यह पूजा उसकी ऊर्जा और शक्ति की की जाती है। प्रत्येक दिन दुर्गा के एक अलग रूप को समर्पित है। पहले दिन माता के शैलपुत्री, दूसरे दिन ब्रम्ह्चारिणी और तीसरे दिन चंद्रघंटा स्वरुप की आराधना की जाती है .
नवरात्रि के चौथा से छठे दिन
व्यक्ति जब अहंकार, क्रोध, वासना और अन्य पशु प्रवृत्ति की बुराई प्रवृत्तियों पर विजय प्राप्त कर लेता है, वह एक शून्य का अनुभव करता है। यह शून्य आध्यात्मिक धन से भर जाता है। प्रयोजन के लिए, व्यक्ति सभी भौतिकवादी, आध्यात्मिक धन और समृद्धि प्राप्त करने के लिए देवी लक्ष्मी की पूजा करता है। नवरात्रि के चौथे, पांचवें और छठे दिन लक्ष्मी- समृद्धि और शांति की देवी, की पूजा करने के लिए समर्पित है। शायद व्यक्ति बुरी प्रवृत्तियों और धन पर विजय प्राप्त कर लेता है, पर वह अभी सच्चे ज्ञान से वंचित है। ज्ञान एक मानवीय जीवन जीने के लिए आवश्यक है भले हि वह सत्ता और धन के साथ समृद्ध है। इसलिए, नवरात्रि के पांचवें दिन देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। सभी पुस्तकों और अन्य साहित्य सामग्रियों को एक स्थान पर इकट्ठा कर दिया जाता हैं और एक दीया देवी आह्वान और आशीर्वाद लेने के लिए, देवता के सामने जलाया जाता है।
नवरात्रि का सातवां और आठवां दिन
सातवें दिन, कला और ज्ञान की देवी, सरस्वती, की पूजा की है। प्रार्थनायें, आध्यात्मिक ज्ञान की तलाश के उद्देश्य के साथ की जाती हैं। आठवे दिन पर एक ‘यज्ञ’ किया जाता है। यह एक बलिदान है जो देवी दुर्गा को सम्मान तथा उनको विदा करता है।
नवरात्रि का नौवां दिन
नौवा दिन नवरात्रि का अंतिम दिन है। यह महानवमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन कन्या पूजन होता है। जिसमें नौ कन्याओं की पूजा होती है जो अभी तक यौवन की अवस्था तक नहीं पहुँची है। इन नौ कन्याओं को देवी दुर्गा के नौ रूपों का प्रतीक माना जाता है। कन्याओं का सम्मान तथा स्वागत करने के लिए उनके पैर धोए जाते हैं। पूजा के अंत में कन्याओं को उपहार के रूप में नए कपड़े प्रदान किए जाते हैं।
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